बैरी पिया

बैरी पिया


जब से गए परदेस सजन जी याद तुम्हारी आती है

तेरी मीठी मीठी बतियां हर पल मुझे सताती हैं।

ना कोई चिट्ठी ना कोई पाती ना संदेसा आया है
रोज निहारूं बाट सांवरे मन मेरा घबराया है।

सखी सहेली देख के मुझको मंद मंद मुस्काती हैं
नाम तुम्हारा लेकर मेरा रोज़ मजाक उड़ाती हैं।

चूड़ी, बिंदी, कंगना सारे मुझको बहुत चिढ़ाते हैं
तुम बिन साजन ये श्रृंगार रास नहीं मुझे आते हैं।

कैसे खेलूं फाग पिया जी, तुम बिन रंग ना भाते हैं
दिवाली के पकवान तुम बिन फीके ही रह जाते हैं।

रोज़ रात को सपनों में भी याद तुम्हारी आती है
घंटों सुबकती रहती हूं, नींद नहीं फिर आती है।

चिंता के बादल घेरे हैं सावन की काली रातों में
तेरी याद की बिजली कौंधे अबकी बरसातों में।

मन शंका से भर जाता, क्या तुम मुझको भूल चुके
हुई है सौतन नौकरी तेरी, सीने में विरह के शूल चुभे।

जल्दी से आ जाओ बस और नहीं कुछ चाहत है
तेरे बिना तेरी बाबरी देख ले कितनी आहत है।।

आभार – नवीन पहल – ०५.०७.२०२३ 💕💕

# प्रतियोगिता ही

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8 Comments

Gunjan Kamal

06-Jul-2023 01:24 PM

👏👌

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Abhinav ji

06-Jul-2023 07:49 AM

Very nice 👍

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बेहतरीन अभिव्यक्ति

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